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Jivitputrika Vrat Katha
Jivitputrika Vrat Katha: जितिया की पौराणिक व्रत कथा, मिलेगा संतान को लंबी आयु का वरदान... व्रत के दौरान भूलकर भी ना करें ये काम, यहां जानें पारण का समय
इस दिन माताएं विशेषकर पुत्रों के दीर्घ, आरोग्य और सुखमय जीवन के लिए यह व्रत रखती हैं. पति के लिए जिस प्रकार महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं उसी प्रकार पुत्र के लिए भी जीवित्पुत्रिका व्रत निर्जला रहा जाता है. व्रत तब तक पूर्ण नहीं माना जाता जब तक इसकी व्रत कथा ना पढ़ी या सुनी जाए.
जीवित्पुत्रिका व्रत या जितिया व्रत अश्विनी मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को रखा जाता है. इस साल यह 10 सितंबर दिन गुरुवार को है. जीवित्पुत्रिका व्रत को जितिया या जिउतिया व्रत आदि नामों से जाना जाता है. इस दिन माताएं विशेषकर पुत्रों के दीर्घ, आरोग्य और सुखमय जीवन के लिए यह व्रत रखती हैं. पति के लिए जिस प्रकार महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं उसी प्रकार पुत्र के लिए भी जीवित्पुत्रिका व्रत निर्जला रहा जाता है.
जीवित्पुत्रिका व्रत पारण का समय
09 सितंबर दिन बुधवार को दोपहर 01 बजकर 35 मिनट से हो रहा है, जो 10 सितंबर दिन गुरुवार को दोपहर 03 बजकर 04 मिनट तक है. व्रत का समय उदया तिथि में मान्य होगा, ऐसे में जीवित्पुत्रिका व्रत 10 सिंतबर को होगा. जीवित्पुत्रिका व्रत रखने वाली माताएं 11 सितंबर दिन शुक्रवार के सुबह सूर्योदय के बाद से दोपहर 12 बजे तक पारण करेंगी. उनको दोपहर से पूर्व पारण कर लेना चाहिए.
जीवित्पुत्रिका व्रत रखते समय ध्यान रखे ये बातें
आपको बता दें कि जीवित्पुत्रिका व्रत तीन दिन के लिए रखा जाता है. इसमें पहला दिन नहाए खाए, दूसरा दिन जितिया निर्जला व्रत और तीसरा दिन पारण किया जाता है. ऐसे में पहले दिन नहाए खाए मनाते समय कुछ बातों का ख्याल रखना बेहद जरूरी होता है आइए जानते हैं –
- नहाए खाए के दिन सूर्यास्त के बात व्र्त रखने वाली महिला को कुछ नहीं खाना चाहिए. वरना इसके बुरे प्रभाव भी झेलने पड़ सकते हैं.
- नहाए खाए के दिन व्रती और परिवारजनों को लहसुन -प्याज नहीं खाना चाहिए. इस दिन ऐसा खाना ना तो पकाएं और ना ही खाएं.
- इस दिन बाल नहीं काटने चाहिए और ना ही नाखून काटने चाहिए. इस व्रत के दौरान अशुद्ध कार्यों से परहेज करें.
- इस दिन घर में मांस और मदतिरा का सेवन नहीं किया जाना चाहिए. ऐसे करेने से देवी-देवता नाराज होते हैं. इससे आपकी संतान को कष्ट झेलना पड़ सकता है.
- इस दिन झूठ बोलने और किसी व्यक्ति के साथ बुरा व्यवहार करने से बचें. इस दिन किसी व्यक्ति को अपशब्द बोलने से भी बचना चाहिए.
जितिया व्रत की पौराणिक कथा | Jivitputrika Vrat Katha
जितिया व्रत को संतान की लंबी उम्र के लिए किया जाता है. तीन दिन तक चलने वाले इस व्रत के नियम बेहद कठिन होते हैं. इस व्रत में दूसरे दिन यानी कृष्ण पक्ष अष्टमी को पूजन होता है.
व्रत तब तक पूर्ण नहीं माना जाता जब तक इसकी व्रत कथा ना पढ़ी या सुनी जाए. इसलिए आज हम आपको जितिया व्रत की पौराणिक व्रत कथा बता रहे हैं
नर्मदा नदी के पास एक नगर था कंचनबटी. उस नगर के राजा का नाम मलयकेतु था. नर्मदा नदी के पश्चिम में बालुहटा नाम की मरुभूमि थी, जिसमें एक विशाल पाकड़ के पेड़ पर एक चील रहती थी. उसे पेड़ के नीचे एक सियारिन भी रहती थी. दोनों पक्की सहेलियां थीं. दोनों ने कुछ महिलाओं को देखकर जितिया व्रत करने का संकल्प लिया और दोनों ने भगवान श्री जीऊतवाहन की पूजा और व्रत करने का प्रण ले लिया. लेकिन जिस दिन दोनों को व्रत रखना था, उसी दिन शहर के एक बड़े व्यापारी की मृत्यु हो गई और उसका दाह संस्कार उसी मरुस्थल पर किया गया. सियारिन को अब भूख लगने लगी थी. मुर्दा देखकर वह खुद को रोक न सकी और उसका व्रत टूट गया. पर चील ने संयम रखा और नियम व श्रद्धा से अगले दिन व्रत का पारण किया. फिर अगले जन्म में दोनों सहेलियों ने ब्राह्मण परिवार में पुत्री के रूप में जन्म लिया. उनके पिता का नाम भास्कर था. चील, बड़ी बहन बनी और उसका नाम शीलवती रखा गया. शीलवती की शादी बुद्धिसेन के साथ हुई. सियारन, छोटी बहन के रूप में जन्मी और उसका नाम कपुरावती रखा गया. उसकी शादी उस नगर के राजा मलायकेतु से हुई. अब कपुरावती कंचनबटी नगर की रानी बन गई. भगवान जीऊतवाहन के आशीर्वाद से शीलवती के सात बेटे हुए. पर कपुरावती के सभी बच्चे जन्म लेते ही मर जाते थे. कुछ समय बाद शीलवती के सातों पुत्र बड़े हो गए. वे सभी राजा के दरबार में काम करने लगे. कपुरावती के मन में उन्हें देख इर्ष्या की भावना आ गयी. उसने राजा से कहकर सभी बेटों के सर काट दिए. उन्हें सात नए बर्तन मंगवाकर उसमें रख दिया और लाल कपड़े से ढककर शीलवती के पास भिजवा दिया. यह देख भगवान जीऊतवाहन ने मिट्टी से सातों भाइयों के सर बनाए और सभी के सिर को उसके धड़ से जोड़कर उन पर अमृत छिड़क दिया. इससे उनमें जान आ गई. सातों युवक जिंदा हो गए और घर लौट आए. जो कटे सर रानी ने भेजे थे वे फल बन गए. दूसरी ओर रानी कपुरावती, बुद्धिसेन के घर से सूचना पाने को व्याकुल थी. जब काफी देर सूचना नहीं आई तो कपुरावती स्वयं बड़ी बहन के घर गयी. वहां सबको जिंदा देखकर वह सन्न रह गयी. जब उसे होश आया तो बहन को उसने सारी बात बताई. अब उसे अपनी गलती पर पछतावा हो रहा था. भगवान जीऊतवाहन की कृपा से शीलवती को पूर्व जन्म की बातें याद आ गईं. वह कपुरावती को लेकर उसी पाकड़ के पेड़ के पास गयी और उसे सारी बातें बताईं. कपुरावती बेहोश हो गई और मर गई. जब राजा को इसकी खबर मिली तो उन्होंने उसी जगह पर जाकर पाकड़ के पेड़ के नीचे कपुरावती का दाह-संस्कार कर दिया.
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आश्विन मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि का प्रारंभ 09 सितंबर, बुधवार को दोपहर 01:35 बजे पर होगा. जो 10 सितंबर, गुरुवार दोपहर 03:04 बजे तक रहेगी. उदया तिथि की मान्यता के कारण व्रत 10 सिंतबर को रखा जाएगा.
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Published: Sept 09, 2020 - 06:22 | Updated: Sept 09, 2020 - 06:22
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