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क्यों होता है एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर - Extramarital Affairs: How Do They Happen?

एक्सट्रा मैरिटल अफेयर का खतरनाक सच!

अरेंज मैरिज हो या प्रेम विवाह, रिश्तों में भरोसे के बिखरने के मामले सामने आ रहे हैं? अपनी मनमर्जी के मुताबिक सहजीवन (लिव इन) में रहने वाले जोड़ों से लेकर शादी के रिश्ते तक, बेवफाई के हाल ये हैं कि हाल ही में आई एक रिसर्च के अनुसार 10 फीसदी परिवार जीवन साथी की बेवफाई के कारण बिखराव के कगार पर आ जाते हैं। पति-पत्नी दोनों के भावी जीवन के रास्ते अलग-अलग कर लेने की आज के दौर में बड़ी वजह बन रहे हैं ये अमर्यादित रिश्ते।

वैवाहिक जीवन में पति-पत्नी का एक दूसरे के प्रति पूरा समर्पण और त्याग न हो तो निभाव मुश्किल ही होता है। इसी वजह से एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स की शुरुआत धोखे से होती है और झूठ की बुनियाद का सहारा पाकर खड़ी होती है। फैमिली कोट्र्स के आंकड़ों की मानें तो आज हर तीन में से एक तलाक विवाहेतर संबंध की वजह से होता है।

⇉ अवास्तविक सी तलाश में भटकता मन

पति-पत्नी के बीचे रिश्ते की डोर भावनाओं और जिम्मेदारियों के धागों से बंधी होती है। यही वजह है कि प्रत्येक दंपती की चाहत होती है कि इस रिश्ते में हमेशा मिठास और जुड़ाव बना रहे, पर कई बार छोटी-छोटी गलतफहमियों के कारण वैवाहिक रिश्ते में खटास आ जाती है तो कई बार जान-बूझकर एक-दूजे को धोखा देने का प्रक्रम भी देखने में आता है। भरोसा ही न रहे तो जीवन भर का यह रिश्ता बहुत दिन तक नहीं चल सकता। अविश्वास का संकट आ खड़ा होता है।

रिश्ते में दरार पैदा होने लगती है, जिसे शक और एक-दूजे के प्रति संवेदनशीलता का अभाव और पोषित करता है। इन हालातों में विवाहेतर संबंधों की भ्रामक राह खुलती है, जो दिशाहीनता के सिवा कुछ नहीं दे सकती। यह विडंबना ही है कि हमारे टीवी कार्यक्रमों में भी विवाहेतर संबंधों को तार्किक रूप से जायज ठहराकर परोसा जाता है। उन्हें आधुनिक जीवन शैली का हिस्सा बताया जाता है। ऐसे संबंधों का समर्थन कुछ इस तरह किया जाता है कि जिसे देखकर आमजन भी अपने दांपत्य जीवन में कमियां ढूंढने लगते हैं और आकर्षण की डोर परायों से बांधने चल पड़ते हैं। अवास्तविक सी तलाश में भटकता उनका मन इस अनजान डगर पर कदम रखते हुए परिणाम जानते-बूझते भी अनजान बना रहता है।

⇉ बच्चों का अंधकारमय भविष्य

पश्चिमी देशों की तरह हमारे यहां भी बीते कुछ बरसों में शादी के बाद दूसरे पुरुषों और औरतों के साथ रिश्तों की तादाद बढ़ती जा रही है। हैरानी यह है कि ऐसे मामले महानगरों से लेकर छोटे कस्बों तक में देखने को मिल रहे हैं। पूरे-पूरे परिवार इस खेल में तबाह हो रहे हैं। अफसोसजनक ही है कि बिखराव के इस दंश को सबसे ज्यादा बच्चे झेलते हैं। वे बिना किसी गलती के ही माता-पिता के अलगाव का खामियाजा भोगते हैं।

आधुनिकता के नाम पर उकसावे लाने वाली सोच और स्वतंत्रता की आड़ में स्वच्छंदता को जीने की चाह मासूम बच्चों के भविष्य को भी बदहाल कर देती है। ऐसे मामलों में आमतौर पर नाते-रिश्तेदार भी साथ नहीं देते। इसीलिए माता-पिता का ऐसे विकट हालातों में फंस जाना बच्चों को बिल्कुल अकेला कर देता है। इतना ही नहीं, इन्हें सामाजिक तिरस्कार का भी सामना करना पड़ता है। ऐसे अनगिनत उदाहरण हमारे परिवेश में मौजूद हैं, जिनमें रिश्तों की मर्यादित सीमाएं लांघने वाले अभिभावक जेल तक पहुंच जाते हैं और पीछे बच्चे बेसहारा रह जाते हैं। ऐसे रिश्तों के फेर में अगर मां-बाप की जान ही चली जाए तो यह मासूमों की जिंदगी का सबसे त्रासद क्षण होता है। जैसा कि कई मामलों में होता भी है। कई मामलों में मां-बाप नैराश्य के क्षणों खुद अपनी जान ही दे देते हैं। कितनी ही ऐसी खबरें भी आती हैं, जब अभिभावक बच्चों के साथ सामूहिक आत्महत्या कर लेते हैं। कुछ समय पहले दिल्ली की एक अदालत ने घरेलू हिंसा के एक मामले में डीएनए जांच का आदेश दिया। पति का आरोप था कि उसकी पत्नी का विवाहेतर संबंध है। अदालत ने दंपती के दोनों बच्चों के डीएनए परीक्षण की अनुमति दी, ताकि उनके पितृत्व के बारे में सच सामने आ सके। इन परिस्थितियों में बच्चों की मन: स्थिति किस कदर खुद से जूझने के कगार पर आ जाती है, यह आसानी से समझा जा सकता है। ऐसे स्वेच्छाचारी परिवेश में कई बार बच्चे खुद भी दिशाहीन हो जाते हैंं और उनका मन सदा के लिए अपराधबोध के भाव से भी भर जाता है।

⇉ तकनीक ने बढ़ाई भावनात्मक दूरियां

तकनीक ने जीवन को जितना सरल किया है उतना ही उलझाया भी है। यही उलझन अब रिश्तों में आने लगी है। तकनीक की खिड़की से खुला वर्चुअल संसार असल जीवन में रिश्तों को ही लील रहा है। एक समय में ढकी-छिपी रहने वाली संबंधों की निजता अब सार्वजनिक हो चली है। इसका एक परिणाम यह भी है कि रिश्तों में एक-दूसरे को धोखा देने के मामले भी बढ़ गए, क्योंकि अपनों के साथ होते हुए भी औरों से जुड़े रहना सरल है।

कितने ही शोध इस बात खुलासा करते हैं कि वर्चुअल दुनिया में कभी अपनी असली पहचान के साथ तो कभी गुमनाम होकर विवाहित लोग भी दूसरों से जुड़ रहे हैं, खासतौर पर ऑनलाइन डेटिंग साइट्स पर ऐसा खूब हो रहा है। दुनिया भर से जुड़कर स्वयं से ही दूर होने की सौगात आज के जीवन का कटु सच है। चाहे-अनचाहे संवाद की कमी और एकाकीपन आज की जीवनशैली का हिस्सा बन रहा है। अपनों को छोड़ सारे संसार के साथ आभासी संबंध बना लेने की सोच इसे खूब पोषित भी कर रही है। इस जीवनशैली ने सबसे ज्यादा पारिवारिक संवाद पर प्रहार किया है। हम मानें या ना मानें, पर आपसी रिश्तों में आज एक अघोषित अलगाव की स्थिति बन गई है।

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