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गृह वास्तु विचार | Residential Value

प्रश्नः घर के पूर्वजों की तस्वीरें कहां होनी चाहिए?

उत्तरः

1. घर में मृतात्मा पूर्वजों के चित्र सदैव नैर्ऋत्य कोण, या पश्चिम दिशा में लगने चाहिए।

2. घर का भारी सामान, अनुपयोगी वस्तुए नैर्ऋत्य कोण में रखनी चाहिए।

3. मृतात्मका का चित्र पूजन कक्ष में देवता के साथ लगाने से बचंे। पूर्वज हमारे आदर और श्रद्धा के प्रतीक है। वे हमारे इष्ट देवता का स्थान नहीं ले सकते।

प्रश्नः क्या हमारे पूर्वज ईश्वरतुल्य नहीं? पूर्वजों की तस्वीरें ईश्वर के आले में रखकर उनकी पूजा कयों नहीं की जा सकती?

उत्तरः संसार का कोई भी मनुष्य ईश्वरतुल्य नहीं हो सकता। जब जीवित व्यक्ति ईश्वरतुल्य नहीं हो सकता, तो मरने के पश्चात् तो वह मिट्टी है। पंच तत्व का यह शरीर पंच तत्व में विलीन हो जाता है। मृतात्मा की पूजा तो प्रेत पूजा हो जाती है। क्योंकि हमारे पूर्वज सदैव हमारे आदर एवं श्रद्धा के प्रतीक है, उन्होंने हमें जन्म दिया है इसलिए उनका स्मरण कर, हम उनके प्रति कृतज्ञता का भाव व्यक्त करते है। उनके स्मरण और दर्शन से हमें नयी प्रेरणा, ऊर्जा एवं नयी शक्ति की प्राप्ति होती है। कई बारे वे देवत्व शक्ति धारण कर, पूर्वज के रूप में, हमारे और हमारे घर की रक्षा करते है। अतः निःसंदेह वे पूजनीय है। पर सदैव स्मरण रहे कि कि वे दिवंगत है एवं ईश्वर के समतुल्य उनकी पूजा एक दोष में परिणत हो जाएगा, जिसे वे स्वयं स्वीकार नहीं करेंगे।

अतः पूर्वजों की तस्वीरें पश्चिम, नैर्ऋत्य या दक्षिण दिशा में स्थापित कर, उनका पूजन किया जा सकता है। कई लोग पनिहारे पर भी सायं काल दीपक नियमित रूप से जलाते है। ऐसी अवस्था में यह प्रेत पूजा न हो कर पितृ पूजा, पूर्वजों की पूजा में बदल जाती है, जो व्यक्ति को अनंत ऊर्जा एवं रहस्यमय शक्तियों से परिपूर्ण कर देती है।

प्रश्नः कई लोग ईशान में बड़ा चबूतरा बनाकर पूजा स्थल बनाते है। क्या यह सही है?

उत्तरः ईशान में बड़ा चबूतरा बनाकर भार डालना गलत होगा। हां, पूजा स्थल सामान्य से ऊंचाई (Raised-platform) पर होना चाहिए।

प्रश्नः क्या पूर्व या ईशान की दीवार में प्रकोष्ठ (आला) बनाकर पूजा स्थल बनाया जा सकता है?

उत्तरः अवश्य। पर इस प्रकोष्ठ के ऊपर अन्य वस्तुएं, पछीत, या दूसरा आला (प्रकोष्ठ) नहीं होना चाहिए।

प्रश्नः हमारी लोहे की अलमारी पूर्व दिशा में रखी है। क्या उसके ऊपरी खंड में पूजा स्थल स्थापित हो सकता है?

उत्तरः हां! प्र यह चलायमान चंचल पूजा होगी। पूजन कक्ष स्थिर और स्थाई होना चाहिए तथा पूजा समय के अतिरिक्त, उसे हिलाना या छेड़ना गलत होगा।

प्रश्नः क्या घर का पूजन कक्ष स्वतंत्र होना चाहिए?

उत्तरः मनुष्य को यदि आध्यात्मिक शक्ति से परिपूर्ण एवं तेजस्वी होना है, तो उसका पूजन कक्ष स्वतंत्र होना चाहिए। जब हम बच्चों के लिए कमरा, बड़े-बड़े शौचालय एवं स्नानागार, मनोरंजन एवं खाने के लिए हाॅल बनाते है, तो क्या ईश्वर के लिए, स्वयं की उन्नति हेतु एक छोटा सा प्रार्थना कक्ष, भगवान के निमित्त अलग से नहीं बना सकते? यह हमारी संकीर्ण मनोवृत्ति को ही दर्शाता है, पूजा कक्ष स्वतंत्र न बना सकें, तो पूर्व में मंडप जरूर बनाना चाहिए।

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