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गृह वास्तु विचार | Residential Value

पूजन घर के बारे में विशेष

प्रश्नः घर में पूजन कक्ष किधर होना चाहिए?

उत्तरः पूजन कक्ष हमेशा पूर्व, या घर के ईशान्य में होना चाहिए।

प्रश्नः पूजा करते समय व्यक्ति पूर्व या ईशान्य दिशा में बैठे, अथवा उसका मुंह पूर्व या ईशान की तरफ होना चाहिए, इस बारे में बड़ी भ्रांति है।

उत्तरः सूर्य प्रकृति की अनंत शक्ति से परिपूर्ण प्रत्यक्ष देवता है। जिधर सूर्य हो, उधर हमारा मुंह पूजा करते समय होना चाहिए। आप देखते है कि हम सूर्य नमस्कार एवं सूय को अघ्र्य सूर्य के सामने खड़े हो कर करते और देते है। अतः पूजा करते समय हमारा मुंह पूर्व या ईशान में ही हो, इसका विशेष ध्यान रखना चाहिए।

प्रश्नः कुछ लोग कहते है कि भगवान की मूर्तियां पूर्व तथा ईशान में मुंह किये हुए होनी चाहिए?

उत्तरः यदि भगवान की मूर्ति का मुंह पूर्व की ओर होगा, तो उसकी स्थिति पश्चिम में होगी। साधक का मुंह स्वतः ही पश्चिम की ओर हो जाएगा। यदि भगवान की मूर्ति का मुंह ईशान में है, तो साधक का मुंह नैर्ऋत्य में होगा। दोनों ही स्थितियां गलत होंगी।

प्रश्नः हम मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं रखते तथा ईश्वर को सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान एवं सर्वत्र मानते है। ऐसी स्थिति में भी क्या प्रार्थना कक्ष पूर्व, या ईशान में होना चाहिए?

उत्तरः मूर्ति पूजा को आप माने, या ना माने, यह आपके व्यक्तिगत विश्वास एवं श्रद्धा का विषय है। ईश्वरीय शक्तियां आपके मानने, या नहीं मानने से प्रभावित नहीं होती। सूर्य को आप माने, या न माने, वह हर प्राणी को स्वच्छंद प्रकाश और ऊर्जा देता है। पर उसकी रहस्य से भरी अनंत शक्तियों को जानना जरूरी है। इस जानकारी से आपकी योग्यता और ज्ञान बढ़ते है। सूर्य को कोई फर्क नहीं पड़ता है।

फिर सामान्य शिष्टाचार का नियम भी यही है कि हम किसी भी व्यक्ति का स्वागत, अभिवादन उसके सामने से करते है। सूर्य को हम समर्य भगवान न भी माने, तो उसकी अनंत ऊर्जा और किरणों के दर्शन हमें पूर्व एवं अधिकतम ऊर्जा का दर्शन ईशान से ही होगा। अतः पूजा घर, या प्रार्थना कक्ष पूर्व अथवा ईशान में बनाना ही वैज्ञानिक पक्ष को स्वीकार करता है।

हमारे पूर्वज सत्यखोजी ऋषि बहुत बड़े वैज्ञानिक थे। ऋषि शब्द का अर्थ है - ‘‘ऋषियों सिर्च कर्तार‘‘। जो निरंतर सत्य एवं ज्ञान की खोज में शोध (रिसर्च) करते रहें, वे ही तो ऋषि कहलाये। ऋषि कभी गलत नहंी होते एवं शास्त्र कभी निष्फल नहीं होते। यह बात हमें वास्तु शास्त्र को पढ़ने के पहले खुले दिल और दिमाग से स्वीकार कर लेनी चाहिए। नास्तिकता मनुष्य का नकारात्मक गुण है, कृतघ्नता है। जो है उसको स्वीकार न करना नास्तिकता है। नास्तिकता से आज दिन तक किसी का भला नहीं हुआ। मनुष्य को ईश्वरीय शक्ति और देवत्व के प्रति सकारात्मक होना चाहिए एवं सदैव कृतज्ञता का भाव रखना चाहिए। तभी मानवीय सद्गुणों में वृद्धि होगी।

प्रश्नः अधिकतर पूजा घर रसोई में होते है। क्या यह सही है?

उत्तरः जिनके भी पूजा घर रसोई में है, वे सभी दुःखी एवं संतप्त है। उनके पूर्वज एवं भगवान दोनों ही उनसे नाराज रहते है, क्योंकि आप जानते है कि भगवान तो भाव एवं सुगंध के भूखे होते है। रसोई घर में जो कुछ भी आप पकाते है, उसकी दुर्गंध भगवान एवं आपके पूर्वजों दोनों को ही सूंघनी पड़ती है। आपका उनके प्रति निरंतर यह व्यवहार ठीक नहीं।

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