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भूमि परीक्षा की दूसरी विधि | The second ground test method.

  • रोगकर वास्तु: जो भूमि अग्नि कोण और दक्षिण के मध्य में नीची हो कर वायु कोण और उत्तर के मध्य ऊंची हो, उसे रोगकर नामक वास्तु (भूमि) कहते है। इसमें रहने से मनुष्य को रोग होता है।
  • अर्गल वास्तु: जो भूमि नैर्ऋत्य कोण तथा दक्षिण के मध्य नीची हो कर ईशान कोण और उत्तर के मध्य में ऊंची हो, उसे अर्गल वास्तु भूमि कहते है। ऐसी भूमि ब्रह्म महापापो को दूर करती है।
  • श्मशान वास्तु: जो भूमि ईशान कोण और पूर्व के मध्य में ऊंची होकर पश्चिम और नैर्ऋत्य कोण में नीची हो, उसका नाम श्मशान वास्तु (भूमि) है। यह भूस्वामी के कुल का नाश करती है।
  • भूमि परीक्षा की दूसरी विधि
  • श्येनक वास्तु: जो भूमि अग्नि कोण में नीची हो कर नैर्ऋत्य, ईशान और वायव्य कोण में ऊंची हो, उसे श्येनक नामक वास्तु (भूमि) कहते है। ऐसी भूमि भूस्वामी के नाश एवं मृत्यु का कारण होती है।
  • स्वमुख वास्तु: जो भूमि ईशान कोण, अग्नि कोण और पश्चिम में ऊंची होकर नैर्ऋत्य कोण में नीची हो, उसे स्वमुख नामक वास्तु (भूमि) कहते है। ऐसी भूमि में रहने वाला प्राणी दरिद्रता प्राप्त करता है।
  • ब्रह्म वास्तु: जो भूमि नैर्ऋत्य कोण, अग्नि कोण और ईशान कोने में ऊंची होकर पूर्व तथा वायव्य कोण में नीची हो, उसे ब्रह्म वास्तु कहते है ऐसी भूमि मनुष्यों के लिए सदा बुरी है।
  • स्थावर वास्तु: जो भूमि अग्नि कोण में ऊंची हो तथा नैर्ऋत्य कोण, ईशान कोण और वायु कोण में नीची, उसे स्थावर वास्तु (भूमि) कहते है। ऐसी भूमि मनुष्यों के लिए सदा शुभ रहती है।
  • स्थंडिल वास्तु: जो भूमि नैर्ऋत्य कोण में ऊंची हो तथा अग्नि कोण, वायु कोण और ईशान कोण में नीची हो, उसे स्थंडिल वास्तु कहते है यह सभी प्राणियों के लिए शुभ है।
  • शांडुल वास्तु: जो भूमि ईशान कोण में ऊंची होकर, अग्नि कोण, नैर्ऋत्य कोण और वायु कोण में नीची हो, उसे शांडुल वास्तु (भूमि) कहते है। यह सभी प्राणियों के लिए अशुभ है।
  • भूमि परीक्षा की दूसरी विधि
  • सुस्थान वास्तु: जो भूमि नैर्ऋत्य कोण और ईशान कोण में ऊंची होकर वायव्य कोण में नीची हो, उसे सुस्थान वास्तु कहते है। ऐसी भूमि ब्राह्मणों के लिए अति उत्तम होती है।
  • सुतल वास्तु: जो भूमि पूर्व दिशा में नीची हो कर नैर्ऋत्य कोण, वायु कोण और पश्चिम में ऊंची हो, उसे सुतल वास्तु कहते है। ऐसी भूमि क्षत्रियों के लिए अति उत्तम होती है।
  • चर वास्तु: जो भूमि उत्तर दिशा, ईशान कोण और वायु कोण में ऊंची होकर दक्षिण में नीची हो, उसे चर वास्तु कहते है। ऐसी भूमि वैश्यों के लिए अति उत्तम होती है।
  • श्वमुख वास्तु: जो भूमि पश्चिम दिशा में नीची हो कर ईशान कोण, पूर्व दिशा और के लिए अति उत्तम होती है।
  • भूमि परीक्षा की दूसरी विधि

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