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« Home   वास्तु शास्त्र टिप्स | Special Vaastu Shastra Tips For Your Home in Hindi.

वास्तु शास्त्र का परिचय | Introduction to Vastu Shastra.

आग्नेय (दक्षिण-पूर्वी) कोण में रसोई बनाने का प्रमुख कारण यह है कि सुबह पूर्व से सूर्य की किरणें विटामिन युक्त होकर दक्षिण क्षेत्र की वायु के साथ प्रवेश करती है। क्योंकि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा दक्षिणायन की ओर करती है, अतः आग्नेयकों की स्थिति में इस भाग को अधिक विटामिन ‘एफ‘ एवं ‘डी‘ से युक्त सूर्य की किरणें अधिक समय तक मिलती रहे, तो रसोई घर में रखे खाद्य पदार्थ शुद्ध होते रहेंगे और इसके साथ-साथ सूर्य की गर्मी से पश्चिमी दीवार की नमी के कारण विद्यमान हानिकारक कीटाणु नष्ट होते रहते है। उत्तरी-पूर्वी भाग ईशान कोण में आराधना स्थल या पूजा स्थल रखने का प्रमुख कारण यह है कि पूजा करते समय मनुष्य के शरीर पर अधिक वस्त्र न रहने के कारण प्रातःकालीन सूर्य की किरणों के माध्यम से शरीर में विटामिन ‘डी‘ नैसर्गिक अवस्था में प्राप्त हो जाती है और उत्तरी क्षेत्र से पृथ्वी की चुंबकीय ऊर्जा का अनुकूल प्रभाव भी पवित्र माना जाता है। अंतरिक्ष से हमें कुछ अलौकिक शक्ति मिलती रहे, इसीलिए इस क्षेत्र को अधिक खुला रखा जाता है।

उत्तर-पूर्व में आने वाले पानी के स्त्रोत का प्रमुख आधार यह है कि पानी में प्रदूषण जल्दी लगता है और पूर्व से ही सूर्य उदय होने के कारण सूर्य की किरणें जल पर पड़ती है, जिसके कारण इलेक्ट्रोमेग्नेटिक सिद्धांत के द्वारा जल को सूर्य से ताप प्राप्त होता है। उसी के कारण जल शुद्ध रहता है। दक्षिण दिश में सिर रखने का प्रमुख कारण पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का मानव पर पड़ने वाला प्रभाव ही है। जिस प्रकार चुंबकीय किरणें उत्तरी धु्रव से दक्षिणी ध्रुव की तरफ चलती है, उसी प्रकार मनुष्य के शरीर में जो चुंबकीय क्षेत्र है, वह भी सिर से पैर की तरफ होता है। इसीलिए मानव के सिर को उत्तरायण एवं पैर को दक्षिणायन माना जाता है। यदि सिर को उत्तर की ओर रखें तो चुंबकीय प्रभाव नहीं होगा, क्योंकि पृथ्वी के क्षेत्र का उत्तरी धु्रव मानव के उत्तरी पोल धु्रव से घृणा करेगा और चुंबकीय प्रभाव अस्वीकार करेगा, जिससे शरीर के रक्त संचार के लिए उचित और अनुकूल चुंबकीय क्षेत्र का लाभ नहीं मिल सकेगा, जिससे मस्तिष्क में तनाव होगा और शरीर को शांतिमय (पूर्वक) निद्रा का अनुकूल अवस्था प्राप्त नहीं होगी। सिद दक्षिण दिश में रखने से चुंबकीय परिक्रमा पूरी होगी और पैर उत्तर की तरफ करने से दूसरी तरफ भी परिक्रमा पूरी होने के कारण चुंबकीय तरंगों के प्रभाव में रुकावट न होने से अच्छी नींद आएगी।

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