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भारत, नेपाल और चीन के बीच कालापानी बॉर्डर का विवाद | India Nepal & China Kalapani Border Dispute in Hindi


क्या है भारत चीन डोकाला सीमा विवाद, जानिए…

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हालिया दिनों में भारत के महासर्वेक्षक पद से सेवानिवृत्त हुए स्वर्ण सुब्बाराव ने कालापानी क्षेत्र में घुसने के चीन के दावे को आधारहीन बताया। जानिए कालापानी बॉर्डर का विवाद और इसका सच क्या है। …

भारत चीन डोकलाम विवाद के साथ ही चीन ने एक नया विवाद इंडो- नेपाल बॉर्डर कालापानी भी शुरु कर दिया है. यह बॉर्डर विवाद भी धीरे धीरे बढती जा रही है. यह बॉर्डर विवाद डोकलाम विवाद से सम्बंधित है, जहाँ पर अभी भी भारतीय सेना चीनी सेना के सामने डट कर खड़ी है।

क्या है भारत और नेपाल के बीच कालापानी बॉर्डर का विवाद | Kalapani Border dispute between India and Nepal in Hindi

विवाद का आरम्भ कैसे हुआ (India Nepal Kalapani Dispute Start)

चीन का एक अखबार ग्लोबल टाइम्स के नाम से चलता है, जिसे चीनी सरकार ही अपनी देख रेख में चलाती है. इस अखबार में जारी किये गये आर्टिकल बहुत अधिक प्रांतीय (प्रोवोकेटिव) हुआ करते हैं. जो भी देश चीन के खिलाफ़ कुछ भी कहता है अथवा चीन की गतिविधियों पर प्रश्न उठाता है, उसके विरुद्ध इसमें बहुत बुरी तरह से लिखा जाता है, चाहे वह कोई भी देश हो, अमेरिका, जापान अथवा भारत. ग़ौरतलब है कि डोकलाम विवाद अभी तक सुलझा नहीं है, तथा भारतीय सेना और चीनी सेना के बीच एक तनाव की स्थिति लगातार बनी हुई है. इसी को मुद्दा बनाकर चीन ग्लोबल टाइम्स में, भारत के ख़िलाफ़ लिखते हुए कहा है कि यदि भारतीय आर्मी डोकलाम से नहीं हटाई जाती है, तो चीन बहुत ही जल्द कश्मीर अथवा उत्तराखंड के कालापानी मे दख्ल देना शुरू कर देगा।

इस अखबार में यह बात छपने के एक दिन बाद चीन के विदेश मंत्री वांग वेनली ने ग्लोबल टाइम से भी अधिक कड़े कड़े शब्दों में भारत के ख़िलाफ़ एक बयान दिया, जो कि भारतीय कूटनीतिज्ञों को भी बहुत बुरा लगा. उसने कहा कि ‘भारत में भी कई ट्राई –जंक्शन बॉर्डर हैं, क्या होगा यदि हमारी चीनी सेना भारत- नेपाल बॉर्डर कालापानी में अथवा कश्मीर के भारत- पाकिस्तान बॉर्डर में दखल अंदाजी देने लगे’. चीनी विदेश मंत्रीं के अनुसार डोकलाम चीन और भूटान का बॉर्डर है।

चूँकि भूटान और भारत के बीच बहुत ही अच्छा सम्बन्ध है, अतः भारत यहाँ पर लगातार दखल दे रहा है, इसी पर चीन कह रहा है कि भारत के जिस भी देश के साथ सम्बन्ध अच्छे नहीं चल रहे हैं, उनके बॉर्डर पर वे यदि अपनी सेना खड़ी करके ये कहने लग जाएँ कि, वे एक विवादित स्थान पर खड़े हैं और भारत को पीछे करने लगे तो भारत को कैसा लगेगा। हालाँकि यह तर्क पूरी तरह से आधारहीन है, अतः लोगों को आश्चर्य होता है कि चीनी सरकार ने आम लोगों के बीच ऐसी बातें कैसे कर दी. किन्तु इस बात से भारतीय सरकार को इसका अंदाजा हो गया है कि भारत को जल्द से जल्द अपनी सभी बॉर्डर विवाद सुलझाने होंगे, अन्यथा चीन वहाँ पर भी दखलंदाजी कर सकता है।

भारत चीन डोकलाम विवाद की वजह (Indian China Doklam Conflict Real Resions)

ग़ौरतलब है कि चीन और भारतीय सेना डोकलाम पठार पर एक दुसरे के आमने सामने खड़ी है. इसका कारण ये है कि यहाँ पर याडोंग क्षेत्र चीनी सेना का बेस है, जिसे चीन ने एक रेलवे लाइन के माध्यम से मेन लैंड चीन से सम्बद्ध कर रखा है. ताकि यहाँ पर मिलिट्री और हथियार आसानी से मंगाया जा सके. चीन ने अपने इस उद्देश्य को आगे बढाते हुए सोचा कि याडोंग से लेकर अब डोकलाम तक भी एक सड़क का निर्माण कर दिया जाए, ताकि चीन भविष्य में अपने नापाक इरादों में सफ़ल हो सके। इसका भारत ने विरोध किया यही से ये मुद्दा खड़ा हुआ..

डोकलाम में भारत का हस्तक्षेप क्यों आवश्यक (Why India’s Intervention Needed in Doklam)

देखने वाली बात ये है कि डोकलाम पठार भूटान और चीन के बीच का एक विवादित स्थान है. चीन अपना रास्ता यहाँ तक बढाने की कोशिश मे था, जो की एक ट्राईजंक्शन है. ध्यान दें कि ट्राई जंक्शन वह स्थान होता है, जहाँ पर तीन देशों के बॉर्डर आ कर मिलते हैं. अतः जिस भी तीन देश के बॉर्डर एक स्थान पर मिलते हैं, वह स्थान बहुत अधिक विवादित होता है. अतः ऐसे स्थान पर विवाद को टालने के लिए तीनों में कोई भी देश तब तक यहाँ अपनी सेना स्थापित नहीं करती, जब तक किसी तरह का आपातकालीन स्थिति जैसे युद्ध आदि न हो रही हो. हालाँकि चीन ने अनैतिक रूप से इस बात पर ध्यान नहीं दिया और अपनी सड़क यहाँ तक बनाने में लग गयी. यदि चीन यहाँ पर सड़क का निर्माण कर ले तो, भारत का सिलीगुड़ी कोरिडोर बहुत हद तक खतरे में पड़ सकता है. इस वजह से भारत ने डोकलाम में हस्तक्षेप किया. इस समय दोनों देशों की मिलिट्री एक दुसरे के आमने सामने खड़ी है और नेताओ के बीच बयानबाजियां चल रही हैं।

इसी पर चीन भारत और नेपाल के बीच कालापानी बॉर्डर विवाद पर हस्तक्षेप करने की बात कर रहा है. कालापानी बॉर्डर भारत, नेपाल और चीन तीनों देशों का ट्राईजंक्शन बॉर्डर है. हालाँकि ग़ौरतलब है कि किसी भी पहाड़ी क्षेत्र में उस सेना को अधिक फायदा प्राप्त होता है, जो अधिक ऊचाई पर हो. कालापानी में भारतीय सेना अधिक ऊंचाई पर है, जिस वजह से भारत के लिए यहाँ पर परिस्थितियां अनुकूल हैं।

भारत नेपाल आपसी सम्बन्ध (India Nepal Relations)

भारत और नेपाल के बीच हमेशा से एक अच्छा सम्बन्ध रहा है.. जिनमे से कुछ निम्न है..

  • भारत में फिलहाल दीप उपाध्याय नेपाल के राजदूत के रूप में नियुक्त हैं. दीप उपाध्याय के अनुसार नेपाल और भारत का ‘रोटी- बेटी’ का रिश्ता रहा है. इनके इस बात से भारत और नेपाल के रिश्तों की गहराई का पता चलता है.
  • भारत और नेपाल की जॉइंट मिलिट्री एक्सरसाइज़ भी है, जिसे ‘सूर्य किरण’ के नाम से जाना जाता है. यह एक्सरसाइज़ 2017 में उत्तराखंड के पिथोरागढ़ क्षेत्र में हुई थी.
  • वर्ष 2014 में राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबंधन का सरकार बनते ही देश के प्रधानमन्त्री ने यह योजना बनायी कि नेपाल के साथ भारत के सम्बन्ध मजबूत करने हैं. प्रधान मंत्री इसी वर्ष स्वयं दो बार नेपाल गये. पिछले दो वर्षो में सुषमा स्वराज भी लगभग 5 बार नेपाल गयीं.
  • मधेसी विवाद की वजह से हालाँकि भारत के इमेज को नेपाल में बहुत बड़ा झटका लगा था.
  • ध्यान देने वाली बात ये है कि भारत और नेपाल में व्यापार अच्छे रहे हैं. इन दोनों देशों में सांस्कृतिक, धार्मिक और ऐतिहासिक सम्बन्ध भी बहुत मजबूत रहे हैं. यदि मधेसी विवाद को भूल जाया जाए, तो इन दोनों देशों में काफ़ी अधिक समानता है.

भारत- नेपाल बॉर्डर (India Nepal Border)

भारत- नेपाल बॉर्डर तथा नेपाल का अपने बॉर्डर के प्रति नज़रिए का उल्लेख निम्न है..

  • नेपाल अपने बॉर्डर को लेकर हमेशा से काफ़ी संवेदनशील रहा है. वह चाहता है कि उसके बॉर्डर पर किसी अन्य देशों का कोई हस्तक्षेप न हो और बॉर्डर का सभी बाहरी देशों द्वारा सम्मान किया जाए. इसका एक बड़ा कारण रहा है कि सन 1814 का आँग्ल- नेपाल युद्ध. यदि इतिहास में थोड़े गहरे जाएँ तो ये पता चलता है कि नेपाल इस समय एक बहुत ही शक्तिशाली देश था, किन्तु उस समय ब्रिटिश भारत और नेपाल के बीच होने वाले युद्ध मे नेपाल हार जाता है.
  • युद्ध के बाद सन 1816 में नेपाल और ब्रिटिश राज के बीच एक सुगौली समझौता हुआ था, जिस समझौते के अंतर्गत नेपाल को अपनी ज़मीन का एक तिहाई हिस्सा खोना पड़ा था. यह घटना आज भी नेपाल को अपने बॉर्डर के प्रति संवेदनशील बनाए रखता है.
  • इसी वजह से भारत और नेपाल के बीच दो बॉर्डर विवाद हैं, जिनमे पहला है कालापानी बॉर्डर विवाद और दूसरा है सुस्ता बॉर्डर विवाद.

कालापानी बॉर्डर का इतिहास (History of Kalapani Border)

उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में ब्यांस पट्टी स्थित कालापानी क्षेत्र वर्ष 1815 में गोरखा युद्ध के बाद भारतीय भूमि का हिस्सा बन गया था। भारत में उस समय राज कर रही ब्रिटिश सरकार और नेपाल के बीच शांति संधि हुई। इसके परिणामस्वरूप काली नदी के पश्चिम का क्षेत्र नेपाल के महाराजा ने ब्रिटिश सरकार को सौंप दिया।

कालापानी स्रोत से निकलने वाली धारा काली नदी ही है, लिहाजा इस धारा के पश्चिमी भाग के क्षेत्र तब से ही कुमाऊं मंडल का हिस्सा हैं। इसके आधार पर कालापानी स्रोत तक काली नदी के साथ-साथ लिपु धुरा तक सीमा रेखा तय कर दी गई।

ब्रिटिशकाल में 1879 में तैयार किए गए कुमाऊं व गढ़वाल के मानचित्र में इस क्षेत्र को भारत का हिस्सा बताया गया है। बताया जाता है कि मूल मानचित्र लंदन स्थित ब्रिटिश-भारत पुस्तकालय में उपलब्ध है।

चीनी घुसपैठ महज दबाव की रणनीति

डोकलाम के बाद चीन की कालीनदी से घुसपैठ की चेतावनी को राज्य के पूर्व सैन्य अफसरों ने बेदम बताया है। उनका मानना है कि भारत पर दबाव बनाने की चीन की यह सिर्फ रणनीतिक चाल है। भारत की सेना चीन के इस मंसूबे को कभी भी साकार नहीं होने देगी।

भारत-नेपाल की कालीनदी उत्तराखंड से लगी है। चीन बाड़ाहोती, डोकलाम के बाद इस क्षेत्र में भी घुसपैठ की धमकी दे रहा है। मगर, भारत ने यहां धारचूला क्षेत्र में पूरी तैयारी के साथ सेना को तैनात कर रखा है।

भारत नेपाल के बीच कालापानी बॉर्डर विवाद ( Kalapani Border dispute between India and Nepal in hindi)

कालापानी बॉर्डर सम्बंधित सभी विशेष बातों का उल्लेख निम्न है..

  • कालापानी वह स्थान है, जो भारत, चीन और नेपाल के ट्राईजंक्शन के बहुत क़रीब है. मिलिट्री स्ट्रेटेजी के दृष्टिकोण से यह स्थान तीनों देशों के लिए बहुत अहम है.
  • वर्ष 1962 में होने वाले भारत चीन युद्द के समय इंडो- तिब्बतन बॉर्डर सिक्यूरिटी फोर्स ने कालापानी में एक मिलिट्री पोस्ट का निर्माण किया था. ध्यान देने वाली बात ये है कि इस पोस्ट पर चीनी सेना ने अधिक हमले नहीं किये थे, क्योंकि यहाँ पर भारतीय सेना अधिक ऊंचाई पर तैनात थी. यहाँ पर चीनी सेना बहुत नीचे थी, इसी वजह से चीन ने यहाँ पर हमले नहीं किये.
  • इसी वजह से इंडो तिब्बतन फोर्स ने वर्ष 1962 से अब तक कालापानी मे अपने फोर्स बरक़रार रखी हुई है. वर्ष 1962 में जब भारत ने कालापानी में अपनी पोस्ट बनायी, उस समय नेपाल ने भारत का विरोध नहीं किया था. हालाँकि तब भी इसे एक विवादित स्थान के रूप में ही जाना जाता था, किन्तु उस दौरान भारत और नेपाल के सम्बन्ध इतने अच्छे थे कि इन मुद्दों पर काफी ध्यान नहीं दिया गया.
  • अब नेपाल ये कहने लगा है कि भारत को अपने पोस्ट यहाँ से हटाकर कालापानी नदी के पश्चिमी दिशा की तरफ ले जानी चाहिए, क्योंकि कालापानी में जिस स्थान पर भारतीय सेना का पोस्ट है वह नेपाल के अंतर्गत आता है.
  • इस विवाद को लेकर भारत और नेपाल समय समय पर अपनी अपनी दलीलें देते रहते हैं, किन्तु यदि भारत कालापानी पोस्ट लेकर पीछे जाता है, तो भविष्य में चीन नेपाल को मात देकर इस स्थान पर अपना क़ब्ज़ा जमा लेगा. इस वजह से भारत की सैन्य सुरक्षा में काफ़ी खतरे आ जायेंगे. अतः किसी भी क़ीमत पर भारत यह पोस्ट नहीं छोड़ सकेगा.
  • इस विवाद में एक बड़ी भूमिका कालापानी नदी है. ध्यान देने वाली बात है कि नदी समय समय पर अपने बहाव की दिशा बदलती रहती है. अतः भविष्य में यदि नदी अपनी बहाव की दिशा को बदल देती है, तो इससे संलग्न बॉर्डर मे भी परिवर्तन आएगा. इस समस्या से निदान पाने के लिए दोनों देशों को नदी से परे हटके एक बॉर्डर समझौता करना होगा.

नेपाल के लिए महत्वपूर्ण है कालापानी बॉर्डर(Kalapani Border is Important for Nepali)

कालापानी क्षेत्र नेपाल में एक राजनैतिक रूप ले चूका है, मधेसी अन्दोलनों के बाद नेपाल के लोगों के लिए कालापानी बॉर्डर एक बहुत बड़ा मुद्दा बन गया है। अगस्त 2015 में अखिल नेपाल क्रांतिकारी संगठन, जो कि नेपाली माओवादी पार्टी के साथ मिल कर काम करती है, ने इस स्थान पर प्रदर्शन किया और कहा कि भारतीय सेना को कालापानी बॉर्डर से पीछे हट जाना चाहिए. नेपाल के अनुसार कालापानी उसके दारचुला जिले का हिस्सा है।

कालापानी और मधेसी आन्दोलन लिंक क्या है (What is Madhesi Movement & Kalapani Links Up)

नेपाल में मधेसी आन्दोलन के बाद कालापानी से भारतीय आर्मी को हटाने की मांग लगातार की जा रही है, इस आन्दोलन के समय से नेपाल चीन सम्बन्ध बेहतर हुए हैं, इस आन्दोलन के दौरान नेपाल ने भारत पर आरोप लगाया कि भारत जानबूझ कर नेपाल को दिए जाने वाले तेल सप्लाई को रोक रहा है. नेपाल के लगभग सभी आयातों का एक बहुत बड़ा साधन भारत रहा है. अतः आन्दोलन के समय जब नेपाल में तेल नहीं पहुँच पा रहा था, तो यहाँ पर एक भारत विरोधी तत्व देखे गये. इसी भारत विरोधी छवि का फायदा उठाते हुए चीन ने नेपाल की राजनीति में अपना दखल देना शुरू कर दिया है. इस समय नेपाल में चीन वैसे लोगों का समर्थन कर रहा है जो ये चाहते हैं, कि कालापानी विवाद को लगातार बरक़रार रखना चाहिए, ताकि यहाँ पर भारत का पूरा क़ब्ज़ा न हो पाए. इसके पीछे चीन की नियत बहुत अच्छी नहीं मानी जा रही है क्योंकि भविष्य में चीन इस स्थान को अपने अंतर्गत कर लेगा।

कालापानी बॉर्डर विवाद का समाधान (Kalapani Border Dispute Solutions)

कलापानी बॉर्डर विवाद का समाधान भारत और नेपाल दोनों देशो के लिए बहुत आवश्यक हैं. ताकि दोनों देशों के मध्य राजनैतिक और सांस्कृतिक संबंध लगातार बने रहें। जिनमे से कुछ सुझाव निम्न है..

  • भारत सरकार ने नेपाल को यह सुझाया है कि दोनों तरफ़ के प्रतिनिधि एक जॉइंट वर्किंग ग्रुप के अंतर्गत इस समस्या का समाधान निकालें. ध्यान देने वाली बात है कि इस विवाद पर जॉइंट टेक्निकल नाम की एक कमिटी है, जो कि पिछले 18 वर्षों से लगातार इस मुद्दे पर काम कर रही है किन्तु अब तक कोई समाधान नहीं निकल पाया है.
  • भारत, यह स्थान नेपाल से 100 साल के लिए यदि लीज पर भी ले लेता है, तो भारत इस स्थान से सम्बंधित अपने सभी उद्देश्य लगातार पूरे कर पायेगा. इस लीज से यह फायदा होगा कि नेपाल के अन्दर भारत को लेकर जो बॉर्डर सम्बंधित डर बैठा हुआ है, वह डर समाप्त हो जाएगा.
  • इससे सम्बंधित फैसले दोनों देशों को शीघ्र लेना होगा.

भारत चीन डोकाला बॉर्डर विवाद में नेपाल की भूमिका (India China Doka La Dispute Role of Nepal)

इस विवाद में नेपाल का पक्ष- विपक्ष बहुत आवश्यक है. इससे सम्बंधित विशेष बातों का वर्णन निम्न है...

  • नेपाल सरकार की तरफ से इस मुद्दे पर प्रधानमन्त्री कृष्णबहादुर सिंह का औपचारिक बयान आया है कि नेपाल इस विवाद पर इन दोनो देशों में किसी का भी पक्ष नहीं लेगा.
  • हालाँकि यदि यह देखा जाए कि भारत ने किस तरह से सदा नेपाल की सहायता की है और उनके विकास में उनकी मदद की है, तो नेपाल का यह बयान भारत के लिए बहुत अफसोसजनक है.
  • भारत नेपाल का बॉर्डर एक ‘ओपन बॉर्डर’ है, ताकि नेपाली और भारतीय लोग आराम से बिना किसी पासपोर्ट- वीसा के भारत और नेपाल का बॉर्डर पार कर सकें.
  • ध्यान देने योग्य है कि किसी भारतीय को यह इजाज़त नही है कि वह नेपाल में जाकर ज़मीन ख़रीद सके अथवा उनके सरकारी विभागों में नौकरी पा सके, किन्तु नेपाली लोगों को भारत में यह इजाज़त दी गयी है कि वे भारत में किसी भी सरकारी संस्थानों में नौकरी प्राप्त करके कार्यरत रह सकते हैं. हालाँकि सिविल सर्विसेज के लिए नेपालियों को भारत में अनुमति नहीं है.
  • इस तरह से भारत ने एक लम्बे समय तक नेपाल की सहायता की है. इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए यदि नेपाल का डोकाला विवाद पर यह न्यूट्रल फैसला देखा जाए तो ऐसा लगता है, नेपाल ने उस समय भारत का साथ नहीं दिया, जिस समय भारत को इसकी सबसे अधिक आवश्यकता थी.

कालीनदी पहले से भारत का हिस्सा

रिटायर्ड ब्रिगेडियर एसएस पटवाल का कहना है कि कालीनदी पहले से भारत का हिस्सा है। कुछ समय पहले नेपाल के साथ सुरक्षा संधि टूटने से चीन इसका फायदा उठाने की फिराक में है। कालीनदी के बॉर्डर पर भारतीय सेना पहले से मजबूत स्थिति में है। चीन यहां से तो दूर, बाड़ाहोती के रास्ते भी कदम नहीं रख सकता है।

क्यों जरूरी है उत्तराखंड की सुरक्षा?

उत्तराखंड भी हिमालय क्षेत्र में आता है और चीन के साथ 345 किमी. लंबी सरहद साझा करता है. यही वजह है कि उत्तराखंड के सीमावर्ती इलाकों में चीनी सैनिकों की सरगर्मियों का लंबा इतिहास रहा है.

उत्तराखंड के तीन जिले उत्तरकाशी, चमोली और पिथौरागढ़ चीन की सीमा के नजदीक हैं. पहाड़ी इलाकों में स्थित इन तीनों जिलों में पलायन एक बड़ी समस्या है. शिक्षा और बेहतर रोजगार की तलाश में यहां के निवासी बड़ी तादाद में महानगरों में जाकर बस रहे हैं. एक जमाने में यहां के निवासियों के तिब्बत से व्यापारिक संबंध थे, लेकिन 1962 में चीन से जंग के बाद ये संबंध टूट गए.

भारत और नेपाल के बीच उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के कालापानी क्षेत्र को लेकर सीमा विवाद सिर्फ तकनीकी स्तर पर नजर आता है और सच्चाई यह है कि दोनों ही देशों ने इस विवाद को कभी हवा देने की कोशिश नहीं की। न ही कभी यह विवाद सतह पर नजर आया, जबकि इससे इतर दोनों ही देश समय-समय पर सीमाओं को लेकर संयुक्त सर्वे करते रहे हैं। जय हिंद।

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“ मेरा देश बदल रहा है आगे बढ़ रहा है ”

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