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Nirjala Ekadashi 2020: date & time, puja vidh, subh mahurat and importance
निर्जला एकादशी 2020: जानें पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और महत्व | Nirjala Ekadashi 2020: date & time, puja vidh, subh mahurat and importance
तुम ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी का व्रत ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र का जाप करते हुए करो। इस व्रत को करने से तुम्हें अन्य एकादशियों के समतुल्य पुण्य प्रताप होगा। वेदव्यास जी के वचनानुसार, महाबली भीम ने निर्जला एकादशी का व्रत किया, लेकिन द्वादशी के दिन प्रातः काल में ही भूख और प्यास की वजह से भीम मूर्छित हो गया। उस समय माता कुंती ने भीम की मूर्छा पानी पिलाकर दूर किया। अतः इस एकादशी को भीमसेन एकादशी भी कहा जाता है।
आज निर्जला एकादशी है. इस व्रत को अन्न और पानी मके बिना रखा जाता है. उपवास के कठोर नियमों के कारण सभी एकादशी व्रतों में निर्जला एकादशी व्रत सबसे कठिन होता है. निर्जला एकादशी का व्रत ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष के दौरान किया जाता है. अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार निर्जला एकादशी का व्रत मई अथवा जून के महीने में होता है. निर्जला एकादशी का एक व्रतांत महाभारत में पांडवों के भाई भीम से जुड़ा है जिस कारण इसे भीमसेनी एकादशी के नाम भी जानते हैं.
तुम ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी का व्रत ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र का जाप करते हुए करो। इस व्रत को करने से तुम्हें अन्य एकादशियों के समतुल्य पुण्य प्रताप होगा। वेदव्यास जी के वचनानुसार, महाबली भीम ने निर्जला एकादशी का व्रत किया, लेकिन द्वादशी के दिन प्रातः काल में ही भूख और प्यास की वजह से भीम मूर्छित हो गया। उस समय माता कुंती ने भीम की मूर्छा पानी पिलाकर दूर किया। अतः इस एकादशी को भीमसेन एकादशी भी कहा जाता है।
निर्जला एकादशी शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि का प्रारंभ 01 जून से हो चुका है और इसकी समाप्ति 2 जून को 12:04 PM पर होगी। 3 जून को व्रत खोला जायेगा जिसका समय 05:11 AM से 07:53 AM तक है। पारण तिथि के दिन द्वादशी सुबह 09:05 AM पर समाप्त हो जायेगी।
निर्जला एकादशी दान
2 जून को निर्जला एकादशी है. निर्जला एकादशी व्रत एक श्रेष्ठ व्रत है. इस दिन पूजा के साथ साथ दान का भी विशेष महत्च बताया गया है. इस दिन का पूर्ण लाभ लेने के लिए दान करना बहुत ही जरुरी है. लेकिन दान किन चीजों का करना चाहिए इसकी जानकारी होना बहुत ही जरुरी है. क्योंकि निर्जला एकादशी का दान भी विशेष प्रकार की चीजों से ही पूर्ण होता है।
निर्जला एकादशी के दिन कुछ खास चीजों का दान करना चाहिए. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार निर्जला एकादशी के दिन किया जाने वाला दान भी श्रेष्ठ दान माना गया है. इसकी महिमा भी मकर संक्रांति की तरह ही बताई गई है।
निर्जला एकादशी की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार की बात है। जब वेदों के रचयिता वेदव्यास पांडवों के गृह कुशलक्षेम के लिए पधारे। तब महाबली भीम ने उनका खूब आदर-सत्कार किया। हालांकि, वेदव्यास ने अपने तपोबल से भीम की व्यथा जान ली। उस समय वेद व्यास ने उनसे पूछा- हे महाबली तुम्हारे मन में कैसे विचार उमड़ रहे हैं? क्यों चिंतित दिख रहे हो?
तब महाबली भीम ने वेदव्यास से अपने मन की व्यथा सुनाई। उन्होंने कहा- हे पितामह आप तो सर्वज्ञानी हैं, आप तो जानते हैं कि घर में सभी लोग एकादशी का व्रत करते हैं, लेकिन मैं कर नहीं पाता हूं, क्योंकि मैं भूखा नहीं रह सकता हूं। मुझे कोई ऐसा व्रत विधि बताएं, जिससे करने से मुझे सभी एकादशियों के समतुल्य फल की प्राप्ति हो! उस समय वेदव्यास जी ने भीम से कहा- हे महाबली तुम्हें चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है।
ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र
तुम ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी का व्रत ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र का जाप करते हुए करो। इस व्रत को करने से तुम्हें अन्य एकादशियों के समतुल्य पुण्य प्रताप होगा। वेदव्यास जी के वचनानुसार, महाबली भीम ने निर्जला एकादशी का व्रत किया, लेकिन द्वादशी के दिन प्रातः काल में ही भूख और प्यास की वजह से भीम मूर्छित हो गया। उस समय माता कुंती ने भीम की मूर्छा पानी पिलाकर दूर किया। अतः इस एकादशी को भीमसेन एकादशी भी कहा जाता है।
निर्जला एकादशी पूजा विधि
सूर्य देव को जल अर्पित करने के बाद भगवान विष्णु की पूजा पीले पुष्प, फल, अक्षत, दूर्वा और चंदन से पूजा करें। फिर ‘ओम नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जप करें। इसके बाद निर्जला एकादशी की कथा करके आरती करें। इस दिन निर्जला उपवास रखने का विधान है। लेकिन मन में कोई संशय हो या व्रत संबंधित अन्य जानकारी चाहिए हो तो विद्वानों से भी परामर्श कर लें। द्वादशी के दिन शुद्ध होकर व्रत पारण मुहूर्त के समय व्रत खोलें। सबसे पहले भगवान विष्णुजी को भोग लगाएं। भोग में कुछ मीठा जरूर शामिल करें। इसके बाद सबसे पहले भगवान का प्रसाद सबको बांट दें। ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को यथाशक्ति दान-दक्षिणा देकर स्वयं प्रसाद ग्रहण करें। ध्यान रहे, व्रत खोलने के बाद ही आपको जल का सेवन करना है।
निर्जला एकादशी का महत्त्व
एकादशी व्रत हिन्दुओ में सबसे अधिक प्रचलित व्रत माना जाता है. वर्ष में चौबीस एकादशियां आती हैं, किन्तु इन सब एकादशियों में ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी सबसे बढ़कर फल देने वाली समझी जाती है क्योंकि इस एक एकादशी का व्रत रखने से वर्ष भर की एकादशियों के व्रत का फल प्राप्त होता है।
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Published: June 02, 2020 - 06:22 | Updated: June 02, 2020 - 06:22
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