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Krishna Janmashtami 2020
Krishna Janmashtami 2020 : जानें कृष्ण जन्माष्टमी की पूरी कथा, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व | Krishna Janmashtami 2020 Date Subhmurat Puja Vidhi Vrat Katha Significance
भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिन के मौके पर मनाए जाने वाले त्योहार को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के तौर पर पूरे भारत में धूमधाम से मनाया जाता है. इस वर्ष श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार 11 अगस्त 2020 को मनाया जाता है. इस आर्टिकल में आप शुभ मुहूर्त, तिथि, कथा सबकी जानकारी दी हुई है।
इस वर्ष श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार 11 अगस्त 2020 को मनाया जाता है
Krishna Janmashtami 2020 Date:
भगवान श्रीकृष्ण देवताओं में भगवान श्री हरि विष्णु के ऐसे अवतार हैं जिन्होंने अपने जीवन के हर पड़ाव में अलग-अलग रंग प्रदर्शन किया है. भगवान श्री कृष्ण का पूरा बचपन उनकी अद्भुत लीलाओं से भरा पड़ा है. साथ ही उनकी युवावस्था की भी कई मनोरम कहानियां प्रसिद्ध हैं. कभी वह एक राजा के रूप में गरीबों के मसीहा बनकर सामने आते हैं, कभी भगवान के रूप में भक्तों के पालनहार तो युद्ध के समय एक कुशल नीतिज्ञ. भगवान श्री कृष्ण का हर रूप एक दूसरे से अलग और उनके भक्तों के लिए प्रेरणा का काम करता हैं.
कब हुआ भगवान श्री कृष्ण का जन्म
जन्माष्टमी भगवान श्रीकृष्ण के ही जन्मोत्सव को कहा जाता है. पौराणिक गंथों और शास्त्रों के अनुसार श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में मध्यरात्रि के समय हुआ था. भाद्रपद महीने में आने वाली कृष्ण पक्ष की अष्टमी को यदि रोहिणा नक्षत्र का भी संयोग हो तो वह और भी भाग्यशाली माना जाता है. इसे जन्माष्टमी के साथ-साथ भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है.
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी तिथि और शुभ मुहूर्त
- इस वर्ष श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 11 अगस्त को पड़ रही है.
- जन्माष्टमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा के लिए शुभ मुहूर्त रात 12 बजकर 4 मिनट से लेकर रात 12 बजकर 48 मिनट के बीच है.
- व्रत पारण का मुहूर्त 12 अगस्त को 11 बजकर 15 मिनट के बाद है.
- अष्टमी तिथि का आरंभ 11 अगस्त को 9 बजकर 6 मिनट से 12 अगस्त को 11 बजकर 15 मिनट तक है.
जन्माष्टमी व्रत और पूजा विधि
इस व्रत को करने वाले को चाहिए कि व्रत से एक दिन पूर्व यानी सप्तमी को हल्का तथा सात्विक भोजन करें. रात्रि को स्त्री संग से वंचित रहें और सभी ओर मन और इंद्रियों पर काबू रखें.
व्रत वाले दिन सुबह स्नान करने के बाद होकर सभी देवताओं के नमस्कार करे पूर्व या उत्तर को मुख करके बैठें.
हाथ में जल, फल और पुष्प को लेकर संकल्प करके मध्यान्ह के समय काले तिलों के जल स्नान करने के लिए देवकी जी के लिए प्रसूति गृह बनाए. अब सुतिका गृह में सुंदर बिछौना बिछाकर उस पर शुभ कलश की स्थापना करें.
इसके साथ ही भगवान श्रीकृष्ण जी को स्तनपान कराती माता देवकी जी की मूर्ति या संुदर चित्र का स्थापना करें. पूजा में देवकी, वासुदेव, बलराम, नन्द , यशोदा और लक्ष्मी जी इन सबका नाम लेते हुए विधिवत पूजा करें.
यह व्रत रात्रि बारह बजे के बाद ही खोला जाता है. इस व्रत में अनाज नहीं खाया जाता है. फलाहर के रूप में कुट्टू के आटे की पकौड़ी, मावे की बर्फी और सिंघाड़े के आटे का हलवा बनाया जाता है.
जन्माष्टमी का महत्व
- जन्माष्टमी के इस दिन देश के समस्त मंदिरों का श्रृंगार किया जाता है.
- श्री कृष्णावतार के उपलक्ष्य में झाकियां सजाई जाती है.
- भगवान श्रीकृष्ण का श्रृंगार करके झूला सजा के उन्हें झूला झुलाया जाता है.
- स्त्री पुरुष रात के बारह बजे तक व्रत रखते हैं. रात को 12 बजे शंक तथा घंटों की आवाज से श्रीकृष्ण के जन्म की खबर चारों दिशाओं में गूंज उठती है. भगवान श्रीकृष्ण जी की आरती उतारी जाती है और प्रसाद वितरण किया जात है.
कृष्ण जन्माष्टमी की कथा
त्रेता युग के अंत और द्वापर के प्रारंभ काल में अत्यंत पापी कंस उत्पन्न हुआ. द्वापर युग में भोजवंशी राजा उग्रसेन मथुरा में राज्य करता था. उसके बेटे कंस ने उसे गद्दी से उतार दिया और स्वयं मथुरा का राजा बन बैठा. कंस की एक बहन देवकी थी, जिसका विवाह वसुदेव नामक यदुवंशी सरदार से हुआ था. एक बार कंस अपनी बहन देवकी को उसकी ससुराल पहुंचाने जा रहा था. रास्ते में अचानक आकाशवाणी हुई- ‘हे कंस, जिस देवकी को तू बड़े प्रेम से ले जा रहा है, उसी में तेरा काल बसता है. इसी के गर्भ से उत्पन्न आठवां बालक तेरा वध करेगा.’
आकशवाणी सुनकर कंस अपने बहनोई वसुदेव को जान से मारने के लिए उठ खड़ा हुआ. तब देवकी ने उससे विनयपूर्वक कहा- ‘मेरे गर्भ से जो संतान होगी, उसे मैं तुम्हारे सामने ला दूंगी. बहनोई को मारने से क्या लाभ है?’ कंस ने देवकी की बात मान ली और मथुरा वापस चला आया. उसने वसुदेव और देवकी को कारागृह में डाल दिया. काल कोठरी में ही देवकी के गर्भ से सात बच्चे हुए लेकिन कंस ने उन्हें पैदा होते ही मार डाला. अब आठवां बच्चा होने वाला था. कारागार में उन पर कड़े पहरे बैठा दिए गए. उसी समय नंद की पत्नी यशोदा को भी बच्चा होने वाला था.
भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में श्रीकृष्ण जी का जन्म हुआ. उनके जन्म लेते ही जेल की कोठरी में प्रकाश फैल गया. वासुदेव-देवकी के सामने शंख, चक्र, गदा एवं पदमधारी चतुर्भुज भगवान ने अपना रूप प्रकट कर कहा, अब में बालक का रूप धारण करता हूं. तुम मुझे तत्काल गोकुल में नन्द के यहां पहुंचा दो और उनकी अभी-अभी जन्मी कन्या को लेकर कंस को सौंप दो. वासुदेव जी ने वैसा ही किया और उस कन्या को लेकर कंस को सौंप दिया. कंस ने जब उस कन्या को मारना चाहा तो वह कंस के हाथ से छूटकर आकाश में उड़ गई और देवी का रूप धारण कर बोली कि मुझे मारने से क्या लाभ है? तेरा शत्रु तो गोकुल पहुंच चुका है. यह दृश्य देखकर कंस हतप्रभ और व्याकुल हो गया. कंस ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए अनेक दैत्य भेजे. श्रीकृष्ण जी ने अपनी आलौकिक माया से सारे दैत्यों को मार डाला.बड़े होने पर कंस को मारकर उग्रसेन को राजगद्दी पर बैठाया.
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Published: July 23, 2020 - 06:22 | Updated: July 23, 2020 - 06:22
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